रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर विंध्य पर्वत श्रृंखला अन्तर्गत कैमूर पहाड़ी के शिखर पर स्थित है रोहतास गढ़ का किला। आपको बताते चलें कि रोहतास जिला का आदि काल में कारुष प्रदेश नाम था। जिसका वर्णन ब्रह्मांड पुराण में भी आया है। रोहतास गढ़ के नाम पर ही इस क्षेत्र का नामकरण रोहतास होता रहा है । कभी भारत के बादशाह शाहजहां भी इस रोहतास गढ़ किले में अपनी बेगम के साथ रहे हैं।
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सरंचना | Rohtas Fort Bihar
रोहतास गढ़ का किला आलीशान है। 28 मील तक किले का घेरा फैला हुआ है । इस किले के भीतर कुल 83 दरवाजे हैं, जिनमें मुख्य द्वार इस प्रकार हैं :- चारा घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट और मेढ़ा घाट प्रमुख है।
किले के प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी किले में मौजूद हैं । परिसर में अनेकों इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखते ही बनती है ।
बुकानन के दस्तावेजों में “खून टपकने की बात” सच या अंधविश्वास ?
दो हजार फीट की उंचाई पर स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दीवारों से खून टपकता था।अपने समय के विश्व भर में मशहूर अंग्रेजी इतिहासकार फ्रांसीसी बुकानन के रोहतास किले पर किए गए दावे आश्चर्य करने वाले हैं। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग 200 साल पूर्व रोहतास क्षेत्र की यात्रा किया था, तब उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज में की थी ।
उन्होंने अपने दस्तावेजों में कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास रहने वाले कुछ लोग भी इसे सच मानते हैं , जबकि कुछ अंधविश्वास । हमलोग अंधविश्वास ही मानते हैं , विज्ञान के युग में कहां भूत, आत्मा , स्वर्ग , नरक है ?
पौराणिक इतिहास
सोन नद के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के राजा त्रिशंकु के पौत्र व राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था ।
मध्यकालीन इतिहास
जनजातीय और हिन्दू इतिहास
परंपरागत रूप से यह किला कुशवाहा (Source : Serving Empire,Serving Nation : James Tod And Rajputs Of Rajasthan https://brill.com/view/title/15251) और खरवार जनजाति के अधीन रहा
इस्लामिक इतिहास
16 वीं सदी में रोहतास गढ़ किला मुसलमानों के अधिकार में चला गया और लंबे समय तक उनके अधीन रहा ।
शेरशाह के अधीन हुआ रोहतास किला
1539 ई मे शेरशाह और हूँमायूँ मे यूध्द ठनने लगा तो शेरशाह ने रोहतास के खरवार राजा नृपती से निवेदन किया कि मै अभी मूसीबत मे हूँ अतः मेरे जनान खाने को कूछ दिनो के लिये रोहतास किला मे ठहरने दिया जाए ।
रोहतास के खरवार राजा नृपती ने पडोसी के मदद के ख्याल से प्रार्थना स्वीकार किया और केवल औरतो को भेज देने का संवाद प्रेसित किया । कई सौ डोलिया रोहतास दूर्ग के लिये रवाना हूई और पिछली डोली मे स्वयं शेरशाह चला । आगे कि डोलिया जब रोहतास दूर्ग पर पहूची उनकी तलासी होने लगी जीनमे कूछ बूढी औरते थी ।
ईसी बीच अन्य डोलीयो से सस्त्र सैनिक कूदकर बाहर नीकले पहरदार का कत्ल कर के दूर्ग मे प्रवेश कर गये शेरशाह भी तूरन्त पहूचा और अपने कुशल युद्धकौशल और प्लानिंग के दम पर किले पर कब्जा कर लिया । अपने ब्राह्मण मंत्री चूड़ामणि के मदद से शेरशाह सूरी इस किले पर कब्जा जमाने में कामयाब रहें । रोहतास किला खरवारों के हाथ से निकलकर बादशाह शेरशाह सूरी के अधीन हो गया ।
बहुत सारे इतिहासकार शेरशाह के इस कदम को धोखा मानते हैं , जबकि बहुत इतिहासकार कहते है कि गीता में श्री कृष्ण ने कहा था कि ” युद्ध में सब जायज़ है ” , चाणक्य ने भी कहा था कि ” राजा को ताकतवर होना चाहिए” उसके लिए दाम, साम, दंड,भेद सब अपनाना चाहिए । शेरशाह ने यही किया ।
भूत प्रेत के अफवाहों को इसी घटना से बल मिला आपको बताते चले की , इतने बड़े कत्लेआम के कारण ही लोग इसे डरावना और भूत प्रेत के आवाज, खून इत्यादि के अंधविश्वास से जोड़ते हैं ।
शेरशाह इस किले से बहुत प्रभावित था
शेरशाह सूरी इस किले से इतना प्रभावित हुआ कि, उसने रोहतास किला का फोटो कॉपी पाकिस्तान में झेलम नदी के किनारे बनाया । वो किला बिल्कुल इसी तरह का है । नाम भी एक ही है “रोहतास किला” ।
वो विश्व धरोहर में शामिल है, लाखो पर्यटक जाते हैं , जबकि ये असली वाला रोहतास किला सरकारी उदासीना का शिकार है ।
भूत प्रेत की बाते अफवाह है
शेरशाह के बाद कई और लोगों ने भी इस किले में राज किया है , जिनके बारे में आप नीचे पढ़ेंगे । अगर भूत ,प्रेत होते तो ये लोग राज कैसे कर पाते ? अभी भी कई ग्रामीण किले के उपर कभी कभार सोते हैं । जो भी लोग रात में किले के अंदर रात को रुके हैं , वो लोग बताते हैं कि भूत , प्रेत की बाते अफवाह है । किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह सुरी ने सुरक्षा के दृष्टिकोण से कराया था, ताकि कोई किले पर हमला न कर सके।
राजा मान सिंह के सूबेदारी में अकबर के अधीन रोहतास किला
1587 ई. में सम्राट अकबर ने अपने परम प्रिय कछवाहा ( Kachwaha / Kushwaha ) राजा “राजा मान सिंह” (*Click Details) को बिहार व बंगाल का संयुक्त सूबेदार बनाकर रोहतास भेजा था। राजा मान सिंह ने उसी वर्ष रोहतास गढ़ को अपना प्रांतीय राजधानी घोषित कर दिया था ।
रोहतास सरकार में अहम था रोहतास किला
प्रसिद्ध पुस्तक शाहजहांनामा के अनुसार इखलास खां को रोहतास का किलेदार सन्न 1632-33 में नियुक्त किया गया था । अकबरपुर से सटे पहाड़ी के नीचे स्थित एक शिलालेख के अनुसार किलेदार नवाब इखलास खां को मकराइन परगना तथा चांद, सीरिस, कुटुम्बा से बनारस तक फौजदारी प्राप्त थी।
वह चैनपुर, मगसर, तिलौथू, अकबरपुर, बेलौंजा, विजयगढ़ व जपला का जागीरदार था। यानी उसके क्षेत्र में पुराना शाहाबाद, गया, पलामू और बनारस क्षेत्र शामिल था। जिसका शासन वह रोहतास से करता था। 25 फरवरी 1702 को वजीर खां के पुत्र अब्दुल कादिर को रोहतास का किलेदार नियुक्त किया गया। उसी समय रोहतास का किला अवांछित तत्वों के काम आने लगा।
औरंगजेब ने अकबर के रोहतास सरकार में किया बदलाव
अकबर के समय से चली आ रही रोहतास सरकार में औरंगजेब ने कई परिवर्तन किया । औरंगजेब ने सातों परगना को पुनगर्ठित किया ।
ब्रिटिश राज | मॉडर्न इतिहास
1764 ई. में मीर कासिम को बक्सर युद्ध में अंग्रेजों से पराजय के बाद यह क्षेत्र अंग्रेजों के हाथ आ गया। 1774 ई. में अंग्रेज कप्तान थामस गोडार्ड ने रोहतास गढ़ को अपने कब्जे में लिया और उसे तहस-नहस किया ।
फिर बना रोहतास जिला
शाहाबाद गजेटियर में पुन: 1784 में रोहतास जिला स्थापित होने का उल्लेख मिलता है। जिसमें रोहतास, सासाराम व चैनपुर परगनों को मिलाकर जिला बनाया गया है ।
शाहाबाद के अंदर चला गया रोहतास
ब्रिटिश बंदोबस्त में 1787 में जिला के रूप में शाहाबाद जिला का आधिकारिक रूप से स्थापना हुआ । विलियम ऑगस्टस ब्रुक साहब शाहाबाद के पहले कलक्टर बनें । अब रोहतास जिला के रूप में नहीं रहा । रोहतास जिला शाहाबाद के अंदर चला गया और रोहतासगढ़ किले का भी रूतबा कम हुआ ।
पहला स्वतंत्रता संग्राम
स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह ने यही से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।
आजादी के बाद
शाहाबाद से टूट कर फिर बना जिला रोहतास
10 नवंबर 1972 में पुन: रोहतास जिला का निर्माण हुआ और इसका मुख्यालय सासाराम किया गया ।
नक्सल आंदोलन का गवाह बना Rohtas Fort
आजादी के बाद , बंगाल के नक्सलबाड़ी से जमींदारों और सामंतवादी शोषण के खिलाफ शुरू हुए नक्सल आंदोलन का गवाह रोहतास किला भी बना । लंबे समय तक यह किला उत्तरप्रदेश,झारखंड और बिहार के सीमावर्ती नक्सलियों के लिए सेफ ज़ोन बना रहा । यह क्षेत्र नक्सलियों का गढ़ बन चुका था ।
बाद में जब नक्सली अपने परंपरागत सिद्धांतो से भटक गए, सामाजिक न्याय से लूट मार के तरफ बढ़ने लगे तो यह किला नक्सलियों के क्रूरता और अपराध का भी अड्डा बना रहा । आम आदमी तो दूर, पुलिस भी यहां नहीं पहुंचती थी ।
आजादी के बाद पहली बार फहराया तिरंगा
नक्सलियों के चुंगल से मुक्त करा कर तत्कालीन एसपी विकास वैभव ने 26 जनवरी ,2011 को फलीबर रोहतास किले पर तिरंगा फहराया था ( डिटेल के लिए क्लिक कीजिए )
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है किला
भारत सरकार द्वारा रोहतास किला को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर , उसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन किया गया है । लेकिन व्यवस्था,संसाधनों तथा पर्यटकों कि घोर कमी रहती है ।