इंद्रपुरी बांध रोहतास जिले के तिलौथू ब्लॉक के इंद्रपुरी में सोन नदी के ऊपर निर्मित है । जैसा कि आपको मालूम होगा , हिंदुस्तान में हजारों छोटे बड़े नदियों के बीच सिर्फ 2 ही नद हैं ( पुलिंग) । ब्रम्हपुत्र नद और सोन नद दोनों मर्द /पुलिंग हैं ।
मध्य प्रदेश के अमरकंटक के पास नर्मदा नदी के पूर्व से सोन नद बहता है । अपने जन्मस्थली मध्यप्रदेश से निकल कर उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और बिहार के कुछ जिलों से होते हुए पटना के पास जाकर गंगा नदी में मिल जाती है ।
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सोन नाम के पीछे रोचक तथ्य
पीले ,चमकदार और सुनहरे रंग के बालू अर्थात रेत होने के कारण इस नद का नाम सोन पड़ गया । सोन नद के बालू ,सोने की तरह ही चमकदार होते हैं ।
गृह निर्माण में सोन का बालू उपयोग होता है । बिहार , झारखंड के अलावे उत्तरप्रदेश में भी सोन के बालू का भारी डिमांड रहता है ।
मछलियों के लिए मशहूर
सोन नद पर बना इंद्रपुरी डैम मछलियों के लिए मशहूर रहा है , इसमें कई तरह की स्वादिष्ट मछलियां पाई जाति है ।
अब मछलियों कि संख्या कम हो गई है ,लेकिन अभी भी खाली समय में लोग यहां खाना बनाने और पिकनिक मनाने के लिए आते हैं ।
इंद्रपुरी डैम का आर्किटेक्चर
इंद्रपुरी बांध 1,407 मीटर लंबा है, यह लंबाई इस बांध को दुनिया का चौथा सबसे लंबा बांध होने का गौरव प्रदान करता है ।
एचसीसी कम्पनी द्वारा इस बांध के उपर सड़क भी बनाया गया है , यह वही एचसीसी कम्पनी है जिसने दुनिया के सबसे लंबे फरक्का बराज का निर्माण किया था । फरक्का बराज की लम्बाई लगभग 2,263 मीटर है ।
इतिहास
इंद्रपुरी बांध का निर्माण 1960 के दशक में शुरू किया गया था । 1968 में यह बांध चालू हुआ था । मुख्य नहरें 209 मिल हैं । छोटी नहरें 150 मिल हैं । 1478 मिल तक की दूसरी छोटी नहरें भी हैं ।
कभी व्यापार के साधन थें सोन के नहर
4543 माल-वाहक और 537 यात्री-वाहक छोटे जलपोत रजिस्टर्ड थे ।
20 वीं सदी में ये स्टीमर रोहतास के डेहरी और औरंगाबाद के बारूण से सोन नद में चलकर गंगा नदी में पहुंचते थे, जहां से यात्री वाहक और माल वाहक बड़े स्टीमरों के जरिये पूरब दिशा में कोलकाता शहर तक और पश्चिम दिशा में बनारस होते हुए इलाहाबाद अर्थात प्रयागराज तक पहुंचते थे ।