आधुनिक युग में जहां बाजार में सैकड़ों कम्पनियों की ब्रांडेड घड़ियां बाजारों में छाई हुई हैं, वहीं सासाराम/रोहतास जिले के डेहरी-ऑन-सोन में आज भी लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी धूप घड़ी का उपयोग उस रास्ते से आने-जाने वाले लोग समय देखने के लिए करते है .
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कोणार्क मंदिर की तरह है धूप घड़ी
जिस तरह कोणार्क मंदिर के पहिए सूर्य की रोशनी से सही समय बताते हैं, उसी तरह डेहरी ऑन सोन में अंग्रेजो द्वारा स्थापित धूप घड़ी भी काम करती है.
सिंचाई यांत्रिक प्रमंडल में है धूप घड़ी
यह धूप घड़ी डेहरी स्थित सिंचाई यांत्रिक प्रमंडल में मौजूद है . यह घड़ी आज भी स्थानीय लोगों के समय देखने के काम आती है.
अंग्रेजो ने बनवाया था यह घड़ी
सन् 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह के कुछ वर्ष बाद से ही डेहरी के अंग्रेज सैनिक छावनी में हलचल बढ़ने लगी थी. अंग्रेजों को अपने वैश्विक अनुभवों से यह बात बखूबी मालूम था की बगावत को विकास के जरिए शासन का हथकंडा बनाया जा सकता है .
अंग्रेज फौजी इंजिनियर डिकेंस के नेतृत्व में सासाराम, डेहरी, भोजपुर, बक्सर में एक साथ विकास के कई काम शुरू हुए . सासाराम जिला में डेहरी स्थित सोन नदी में बांध का निर्माण और नहरों की खुदाई, आईटीआई की स्थापना के साथ ही एक अभियांत्रिकी वर्कशॉप के काम एक्टिव मोड में थे .
काम की प्राथमिकता समय के साथ जुड़ी थी तो उन्होंने कामगारों के लिए धूप घड़ी का भी निर्माण कराया जिसके पूरा होने के 150 वर्ष पूरे हो चुके हैं ।
सन् 1871 में बना था धूप घड़ी डेहरी
बता दें कि यह घड़ी ब्रिटिश शासन काल में बनाई गयी थी. 1871 में स्थापित यह घड़ी बिहार की ऐसी घड़ी है, जिससे सूर्य के प्रकाश के अनुसार समय का पता चलता है.
इसी से दिन होता शुरू ….इसी पर होता था खत्म
भारत के आजादी से पहले अंग्रेजों ने सिंचाई विभाग में कार्यरत कामगारों को समय का जानकारी कराने के लिए इस घड़ी का निर्माण कराया था. इसी घड़ी से समय देखकर कामगारों का दिन शुरू होता था , और घड़ी का समय देख कर दिन का काम बन्द किया जाता था।
धूप घड़ी का बनावट
धूप घड़ी के बीच में मेटल अर्थात धातु की तिकोनी प्लेट लगी है. एंगल / कोण के हिसाब से उसपर नंबर अंकित किए हुए हैं . धूप घड़ी एक ऐसा यंत्र है, जिससे दिन में समय की गणना की जाती है, और इसे नोमोन कहा जाता है. घड़ी को एक चबूतरे पर स्थापित किया गया है.
रोमन और हिंदी में देखें समय
धूप घड़ी ( Sundial Dehri Rohtas ) में रोमन और हिन्दी के अंक लिखे हुए हैं. इसके माध्यम से सूर्य के प्रकाश से समय देखा जाता था. इसी वजह से इसका नामकरण धूप घड़ी हुआ. उस समय नहाने से लेकर पूरा दिन भर का सारा काम समय के आधार पर किया जाता था .
क्या कहते हैं इतिहासकार
सासाराम रेडियो स्टेशन में कार्यरत के.पी जायसवाल शोध संस्थान पटना के शोध अन्वेषक डॉक्टर श्याम सुंदर तिवारी जी धूप घड़ी के बारे में बताते हैं कि जब घड़ी आम लोगों की पहुंच से दूर थी, तब डेहरी के धूप घड़ी का बहुत महत्व था. यांत्रिक कार्यशाला में काम करने वाले श्रमिकों को समय का ज्ञान कराने के लिए यह घड़ी अंग्रेजो द्वारा स्थापित की गई थी.
सूर्य के रौशनी से चलता है धूप घड़ी
श्याम सुन्दर तिवारी जी ने बताया की यह यंत्र इस सिद्धांत पर काम करता है कि दिन में जैसे-जैसे सूर्य पूर्व से पश्चिम की तरफ जाता है, उसी तरह किसी वस्तु की छाया पश्चिम से पूर्व की तरफ चलती है.
सूर्य लाइनों वाली सतह पर छाया डालता है, जिससे दिन के समय घंटों का मालूम चलता है . आपको बताते चलें कि समय की विश्वसनीयता के लिए धूप घड़ी को पृथ्वी की परिक्रमा की धुरी की सीध में रखना चाहिए .
संरक्षण की जरूरत है
यह घड़ी खुले में अपने जीवन के दिन गिन रहा है . छोटी सी चारदीवारी में स्थित इस घड़ी को सिसे से कवर करवाने कि जरुरत है . इस घड़ी को संरक्षित करने की जरूरत है. अगर इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह धरोहर नष्ट हो जाएगी और आनेवाली पीढ़ी धूप घड़ी देखने से भी वंचित हो जाएगी.
ऐसे पहुंचे धूप घड़ी डेहरी-ऑन-सोन
जिला मुख्यालय सासाराम से रेल और सड़क मार्ग से डेहरी अनुमंडल का सीधा संपर्क है . आप पैसेंजर ट्रेन या बस, ऑटो से डेहरी जा सकते हैं . डेहरी पहुंच कर आप ऑटो या ई रिक्शा से धूप घड़ी पहुंच सकते हैं .
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