बिहार के कैमूर जिले में स्थित मां मुंडेश्वरी का मंदिर विचित्र और अति प्राचीन है। मंदिर परिसर में विद्यमान शिलालेखों से इस मंदिर की प्राचीनता प्रमाणित होती है । भारतीय पुरातत्व विभाग इसे 625 ce का प्राचीन मंदिर बताता है । 1868 से 1904 ई. के बीच कई अंग्रेज विद्वान् और पर्यटक यहां आए थे । 1915 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे अपने अंदर लेकर संरक्षित धरोहर का मान्यता प्रदान किया था ।
1968 में पुरातत्व विभाग ने यहाँ की 97 दुर्लभ मूर्तियों को सुरक्षा की दृष्टि से पटना संग्रहालय में रखवा दिया था । आपको बताते चलें कि ,यहां की तीन दुभ मूर्तियां कोलकाता संग्रहालय में भी मौजूद हैं।
यह मंदिर कैमूर जिले के भगवानपुर सबडिवीजन में कैमूर पर्वतश्रेणी के पवरा पहाड़ी पर स्थित है । यह प्राचीन मदिर 608 फीट ऊंचाई पर स्थित है। मुंडेश्वरी मंदिर अष्टकोणीय है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा के तरफ है। इस मंदिर का संबंध मार्केणडेय पुराण से जुड़ा हुआ है। मंदिर में चंड-मुंड के वध से जुड़ी कई कथाएं मिलती हैं।
आपको बताते चलें कि चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ के सेनापति थे जिनका वध इसी भूमि पर हुआ था। मंदिर में हिंदू धर्म के अलावा अन्य धर्मों के लोग भी बड़ी संख्या में बलि देने आते हैं और आंखों के सामने चमत्कार होते देखते हैं।
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मां मुंडेश्वरी धाम में अलग है बलि देने की प्रक्रिया
मां मुंडेश्वरी के मंदिर में कुछ ऐसा होता है जिस पर लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते है । यहां बलि में बकरा चढ़ाया जाता है, लेकिन उसका जीवन नहीं लिया जाता बल्कि उसे मंदिर में लाकर देवी मां के सामने खड़ा किया जाता है, जिस पर पुरोहित मंत्र वाले चावल छिड़कता है।
उन चावलों से वह बेहोश हो जाता है, फिर उसे बाहर छोड़ दिया जाता है। इस चमत्कार को देखने वाले दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं । इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता पशु बलि की सात्विक परंपरा है।
मां शक्ति ने किया था चंड-मुंड का वध
पौराणिक कथाओं के अनुसार चंड-मुंड नाम के असुर का वध करने के लिए जब मां भवानी यहां आई थीं तो चंड के विनाश के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी में छिप गया था। यहीं पर माता ने मुंड का वध किया था। इसलिए यह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी पर कई पत्थर और स्तंभ बीखरे हुए हैं जिनको देखकर लगता है की उनपर श्रीयंत्र, कई सिद्ध यंत्र-मंत्र जरूर उत्कीर्ण हैं।
यहां के शिवलिंग का बदलता है रंग
मां मुंडेश्वरी धाम के गर्भगृह के अंदर पंचमुखी शिवलिंग विराजमान है। इसका रंग सुबह, दोपहर और शाम को अलग-अलग दिखाई देता है। हर सोमवार को बड़ी संख्या में भक्त यहां शिवलिंग पर जलाभिषेक करने आते हैं ।
यहां के पुजारी भगवान भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह शृंगार करके रुद्राभिषेक करते हैं ।
औरंगजेब नहीं तोड़ पाया इस मंदिर को !!
इतिहासकार और स्थानीय लोग बताते हैं कि औरंगजेब द्वारा इस मंदिर को तोड़वाने का प्रयास किया गया। मजदूर मंदिर तोड़ने के काम में भी लग गए थें , लेकिन इस काम में लगे मजदूरों के साथ विचित्र अनहोनियां होने लगी । डर से वे काम छोड़ कर भाग खड़े हुए , कोई मजदूर तोड़ने के लिए राजी नहीं होता था । भग्न मूर्तियां (खंडित मूर्तियां) इस घटना की गवाही देती हैं।
इसे जानना जरूरी है
मां मुंडेश्वरी धाम में शारदीय और चैत्र माह के नवरात्र के अवसर पर श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं । साल में 2 बार माघ और चैत्र में यहां यज्ञ होता है।
मां मुंडेश्वरी धाम पहुंचने के टिप्स
मुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन भभुआ रोड ( मोहनिया रेलवे स्टेशन) है । स्टेशन से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर मंदिर स्थित है। मोहनिया से सड़क मार्ग के द्वारा आसानी से मुंडेश्वरी धाम पहुंचा जा सकता है । पहाड़ी के शिखर पर स्थित मंदिर तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर सीढ़ियां व रेलिंग युक्त सड़कें बनाई गई है। सड़क से 2 पहिया वाहन और 4 पहिया वाहन ऊपर मंदिर तक पहुंच सकते हैं ।