बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में स्थित सूर्य मंदिर प्राचीन तथा अनोखा है। धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने एक रात में इस मंदिर का निर्माण स्वयं अपने हाथों से किया था ।
सनातन संस्कृति में मंदिरों के दरवाजे का दिशा प्रायः पश्चिम दिशा में नहीं होता है , लेकिन इस सूर्य मंदिर के दरवाजे का पश्चिम दिशा में होना इसे खास बनाता है । यह देश का एकमात्र सूर्य मंदिर है, जिसका दरवाजा पश्चिम कि ओर है ।
यहां पर सूर्य भगवान की मूर्ति सात रथों पर सवार है। इसमें वो अपने तीनों रूपों में विद्यमान है । भगवान सूर्य के तीन रूप इस प्रकार हैं प्रात: सूर्य-उदयाचल, मध्य सूर्य – मध्याचल और अस्त सूर्य – अस्ताचल ।
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स्थापत्य एवं वास्तुकला
लगभग 100 फिट ऊंचे सूर्य मंदिर का आर्किटेक्चर / बनावट स्थापत्य एवं वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है । इस अत्यंत आकर्षक व विस्मयकारी मंदिर को बिना सीमेंट या चूना-गारा का प्रयोग किए आयताकार, वर्गाकार, गोलाकार, अर्द्धवृत्ताकार, त्रिभुजाकार इत्यादि स्टाइलों में कटे हुए पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है । आपको बताते चलें कि, यह मंदिर काले और भूरे पत्थरों से निर्मित है ।
दो भागों में बंटा हुआ है मंदिर
देव मंदिर दो भागों में बंटा हुआ है । एक भाग गर्भ गृह है,जबकि दूसरा मुख मंडप है ।
इस मंदिर पर सोने का एक कलश भी मौजूद है
स्थानीय लोगों में एक किवदंति प्रचलित है कि, यदि कोई इस सोने के कलश को चुराने की कोशिश करता है तो वह उससे चिपक जाता है । चैत्र मास व कार्तिक मास में हर वर्ष छठ पूजा के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु और छठ व्रती आते हैं ।
रातों रात बदल गया था मंदिर के दरवाजे का दिशा
आस पास के लोगों के अनुसार जब औरंगजेब भारत के मंदिरों को तोड़ता हुआ औरंगाबाद के देव सूर्य मंदिर पहुंचा, तब पुजारियों ने उससे मन्दिर नहीं तोड़ने के लिए बहुत विनती तथा फरियाद किए ।
औरंगजेब ने सूर्य देवता का मजाक उड़ाते हुए कहा कि अगर यहां पर सच में भगवान हैं और उनमें शक्तियां है तो इस मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम में कर दें , अगर ऐसा हो गया तो में मंदिर को नहीं तोडूंगा। औरंगजेब वहां के साधु संतो और पुजारियों को मंदिर के द्वार की दिशा बदलने की बात कहकर अगले दिन के सुबह तक का वक्त देकर वहां से चला गया था।
इस घटना के बाद वहां के पुजारियों ने सूर्य देवता से प्रार्थना और मिन्नतें किया । अगले दिन सुबह जब पूजा के लिए पुजारी मंदिर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मंदिर का प्रवेश द्वार दूसरे दिशा में बदल चुका था । वह पूर्व से पश्चिम दिशा में हो चुका था। उसी समय से देव स्थित सूर्य देव मंदिर का प्रवेश द्वार पश्चिम दिशा में है।
सूर्य मंदिर तलाब का विशेष महत्त्व है
सनातन जनश्रुतियों के अनुसार सतयुग में इक्ष्वाकु के पुत्र राजा ऐल बीमार थें । उन्हे कुष्ठ रोग हुआ था । राजा ऐल शिकार खेलने जंगल में गए थे। उन्हें शिकार खेलने के क्रम में तेज प्यास और गर्मी लगने लगी । राजा ने इसी तलाब के पानी से प्यास बुझाया और स्नान किया । भारतीय जनश्रुतियों के अनुसार इस तालाब में स्नान करने के बाद राजा का कुष्ठ रोग पूरी तरह से ठीक हो गया।
राजा इस चमत्कार से काफी हैरान हो गए । रात को नींद में सोने पर श्री सूर्य देव ने सपने में दर्शन दिए और कहा कि वह उसी तालाब में विराजमान हैं जिस तलाब में स्नान से उनका कुष्ठ रोग ठीक हुआ है।
इसके घटना के बाद राजा ने उसी स्थान पर भव्य सूर्य मंदिर का निर्माण करवाना प्रारंभ किया । लोग बतातें है कि उस तालाब से भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश की मूर्तियां भी मिली, और उन मूर्तियों का स्थापना राजा ने मंदिर मे करवा दिया।
मन्दिर की प्राचीनता जानकर ,लोग दांतो तले उंगलियां दबा लेते हैं
भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से मंदिर का निर्माण किया है । सूर्य मंदिर के बाहर लगा एक शिलालेख इसके प्राचीनता के बारे में बताता है । शिलालेख के अनुसार , इला पुत्र ऐल ने 12 लाख 16 हजार वर्ष पहले त्रेता युग के बीत जाने के बाद देव स्थित सूर्य मंदिर का निर्माण करवाया था ।
शिलालेख के आधार पर शोधकर्ता और इतिहासकार इस पौराणिक मंदिर का निर्माण काल एक लाख पचास हजार वर्ष से ज्यादा बताते है ।