सासाराम का एक पुराना और दिलचस्प इतिहास है। प्राचीनता और ऐतिहासिक विशिष्टताओं को समेटे जिले में ऐतिहासिक स्थलों की भरमार है। सासाराम शहर से मात्र 8 किलोमीटर दूर और सासाराम की नगर देवी मां ताराचण्डी के धाम से मात्र 3 किलोमीटर दूर स्थित लेरुआ गांव में पुर्व मध्यकालीन मंदिर के अवशेष इधर उधर बिखरे पड़े हुए हैं । इतिहासकार इन अवशेषों को देख कर बताते हैं कि अपने काल का यह प्रमुख और अति महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा होगा ।
लंका की तरह लेरूआ मंदिर कीर्तिमुख जड़ित था
सासाराम प्रखंड के लेरूआ गांव का पूर्व मध्यकालीन मंदिर कीर्तिमुख जड़ित था । पौराणिक कथाओं के अनुसार कीर्तिमुख का जीवंत निर्माण लंका के प्रवेशद्वार पर राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा किया गया था । वर्णन है कि शुक्राचार्य ने रुद्र कीर्तिमुख नाम का दारुपंच अस्त्र लंका के प्रवेश द्वार पर स्थापित किया गया था । इसके कारण बाहर होने वाली प्रत्येक गतिविधि इस पर चिंत्रित होकर दिखाई देती थी।
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भगवान सूर्य के पुत्र और पत्नी की मूर्तियां भी मौजूद है
इसके अलावा यहाँ सूर्य और उनके पुत्र रेवंत, जिसकी उत्पत्ति सूर्य की बड़्वा रूपधारणी संक्षा नाम की पत्नी से हुई थी, की मूर्ति भी मौजूद है ।
इतिहासकार क्या कहते हैं ?
पूर्व शोध अन्वेषक , डॉक्टर केपी जयसवाल शोध संस्थान पटना के श्याम सुन्दर तिवारी जी कहते हैं कि लेरुआं गांव में स्थित प्राचीन मंदिर के घ्व॑सावशेषों को नष्ट होने से सहेजने कि जरूरत है। यह मंदिर कीर्तिमुख यानी “ग्लोरियस फेस” है। यह हिंदू, बौद्ध, जैन घर्म के मंदिर स्थापत्य में मुख्य द्वार पर इस्तेमाल किया जाता है। दक्षिण भारत के मंदिरों में इसका प्रतिनिधित्व ज्यादा
है।
इसके मुख से अग्नि का गोला निकल कर शत्रु का संहार करता था। वर्तमान में घरों, दुकानों द अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर सीसीटीवी का इस्तेमाल इसी का एक रूप है इसके मुख से आग का एक गोला निकल कर शत्रु का संहार करता था।