सासाराम ,रोहतास ,नौहट्टा रेंज में कैमूर पहाड़ी की जंगलों में तेंदू पत्ता इस वर्ष मौसम अनुकूल होने कारण बहुत बड़ी मात्रा में निकले हैं। वे जंगल में फल के साथ खूबसूरती बिखेर रहे हैं। ऐसे में सेंचुरी एरिया में लहलहा रहे 70 करोड़ रुपये से अधिक के तेंदू पत्तों पर वन माफियाओं की ललचाई नजर है। वन माफिया अपने लोगों के साथ जंगलों की सैर करने लगे हैं। संभव है कि एक सप्ताह बाद से पत्तों की तोड़ाई शुरू होगी । तब ये माफिया अपना खेल शुरू करेंगे ।
सासाराम के जंगलों को बचाने में शहीद हो चुके हैं डीएफओ
भारतीय वन सेवा के डीएफओ जितने बड़े ऑफिसर की देश की एकलौती शहादत सासाराम में हुई है । नक्सलियों ने डीएफओ संजय सिंह को इन्ही जंगलों में शहीद किया था । उनकी शहादत रेहल में हुई थी । सासाराम अनुमंडल के चेनारी, दरीगांव,गीताघाट, ताराचण्डी, गोरियां,चिरइयां से लेकर डेहरी अनुमंडल के तिलौथू ,तुतला,नौहट्टा,रोहतास तक फैला है जंगल । बिहार का भभुआ ,सासाराम, यूपी का सोनभद्र, विंध्याचल इत्यादि जिलों से लेकर मध्यप्रदेश तक कैमूर पहाड़ी के जंगल मौजूद हैं ।
क्या आपने तिंदुक नाम पहले कभी सुना है ? असल में तिंदुक नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा लेकिन तेंदू, केंदू , गाब, गाभ नाम बहुत जाना पहचाना है। तेंदू एक प्रकार का फल होता है जो चीकू से भी मीठा होता है और आयुर्वेदिक गुणों का भरमार होता है। इसे सासाराम (बिहार) , मध्य प्रदेश में ‘तेन्दु’ तथा छत्तीसगढ,ओडिशा और झारखण्ड में ‘केन्दु’ कहते हैं।
Table of Contents
जीवन का आधार केंदू
यह वृझ ज्यादातर घने जंगलों में पाया जाता है।यह जंगल में रहने वालो का आय का साधन नही अपितु जीवन यापन का आधार है । तेंदू के फल हल्के पीले रंग के होते हैं। शायद आप सोच रहे होंगे इस छोटे-से फल को बीमारियों के उपचार के लिए कैसे इस्तेमाल किया जाता है, तो ये बात जानने से पहले इसके बारे में पहले जान लेते हैं।
तेंदू वृक्षों की बनावट
तेंदू के पेड़ मध्यामाकार होते हैं। इसके पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है। इसकी लकड़ी चिकनी तथा काले रंग की होती है। इसका उपयोग फर्नीचर बनाने के लिए किया जाता है। चरक-संहिता से उदर्द प्रशमन महाकषाय तथा सुश्रुत-संहिता के न्यग्रोध्रादि-गण में इसका वर्णन मिलता है।
यह 8-15 मी ऊँचा, मध्यमाकार, सघन शाखा-प्रशाखायुक्त सदाहरित वृक्ष होता है। इसकी प्रशाखाएँ अरोमिल तथा तने की छाल गहरे-भूरे अथवा लाल रंग के, हल्के खांचयुक्त होते हैं। इसके पत्ते सरल, एकांतर, 13.7-24 सेमी लम्बे एवं 5 सेमी चौड़े कुंठाग्र अथवा लगभग-लम्बाग्र चिकने तथा चमकीले होते हैं।
तेंदू फूल और फल की विशेषता
इसके फूल एकलिंगी, छोटे, सफेद- पीले रंग के, सुगन्धित गुच्छों में होते हैं। इसके फल साधारणतया एकल, 2.5-5 सेमी व्यास (डाइमीटर) के, अण्डाकार-नुकीले,अर्धगोलाकार,अत्यन्त कषाय रस प्रधान कच्ची अवस्था में हल्के भूरे रंग के तथा पक्के अवस्था में पीले रंग के होते हैं।
तेंदू फल बेहद फायदेमंद | केंदू फल
इसके फलों के भीतर चीकू (चीकू के फायदे) के समान मधुर तथा चिकना गूदा रहता है, जिसे खाया जाता है। बीज संख्या में 4-8, गोलाकार अथवा अण्डाकार तथा चमकीले होते हैं। यह मार्च-जून महीने में फलते-फूलते हैं। तेंदू स्वाद में थोड़ा कड़वा और प्रकृति से अम्लिय, गर्म और रूखा होता है। तेंदू कफपित्त दूर करने वाला, संग्राही (Constipating), लेखन (Scrapping), स्तम्भक (Styptic), खाने में अरुचि उत्पन्न करने वाला, व्रण (अल्सर) में फायदेमंद होता है। यह प्रमेह या डायबिटीज, व्रण, रक्तदोष, रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहना), दाह या जलन, मेदोरोग (मोटापा), योनिदोष (योनिरोग) तथा पित्तदोष को ठीक करने वाला होता है। पका हुआ तेंदू फल मधुर, हजम करने में थोड़ा, देर से पचने वाला, कफ बढ़ाने वाला, पित्त कम करने वाला तथा प्रमेह यानि सुजाक रोग में हितकर होता है।
सासाराम के तेंदू वृक्ष की लकड़ियों की विशेषता
इसका लकड़ी का सार पित्त संबंधी रोगों में फायदेमंद होता है। इसका कच्चे फल-स्निग्ध, थोड़े कड़वे, लेखन, लघु, मल को रोकने वाला, शीतल, रूखे, कब्ज दूर करने वाले, वातकारक तथा अरुचिकारक होते हैं। तेंदू फल एवं त्वचा स्तम्भक (Styptic), दस्त को रोकने वाला, बुखार में उपकारी, जीवाणुरोधी, मुख व गले के रोग में फायदेमंद तथा घाव को जल्दी सुखाने में मदद करती है।
सासाराम के जंगलों में पाया जाने वाला तेंदू का उपयोग | Kendu Leaves Bihar
- बुखार में
- सूजन में
- हिचकी में
- मुँह के छाले में फायदेमंद तेंदू
- खाँसी में फायदेमंद तेंदू
- आँख संबंधी रोगों में फायदेमंद तेंदू
- कान के दर्द से दिलाये राहत तेंदू
- लूज मोशन में
- मूत्र मार्ग में अश्मरी या पथरी में
- लकवा में
- जले हुए घाव भरने में
- बीड़ी बनाने में