अगर फुर्सत मिले, पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हजारों साल का अफसाना लिखता है !!
प्रकृति ने सासाराम शहर को वन, पहाड़ , झरनों के अलावा नदियों से भी नवाजा है । वैसे तो सासाराम से कई नदियां निकलती हैं , जिसमें से कुछ जीवंत अवस्था में है तो कुछ मृत अवस्था में है , जबकि कई नदियां विलुप्त हो गई । इन सभी नदियों के बारे में कभी बाद में जानेंगे , लेकिन फिलहाल काव नदी पर प्रकाश डालते हैं ।
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काव नदी | Kao River
काव नदी बिहार में गंगा के प्रमुख सहायक नदियों में से एक है । यह नदी बिहार में गंगा के प्रवाह को धार देती है । इसके आस पास कई नगर और बाज़ार बसे हुए हैं । काओ / काव नदी कभी किसानों के लिए जीवनदायनी बन जाती है तो कभी कहर बरपाने वाली डायन का रूप अख्तियार कर लेती है ।
काव नदी की जन्मस्थली सासाराम है
शाहाबाद जिला में गंगा नदी की प्रमुख संगिनी काव नदी की जन्मस्थली सासाराम है । सासाराम का मशहूर सीता कुंड/ मांझर कुंड का पानी जब पत्थरो को चीरता हुआ आगे बढ़ता है तो वह धुआं कुंड में लगभग 130 फिट नीचे गिरकर धरती को प्रणाम करता है ।
यहां पानी गिरने की रफ्तार इतनी तेज़ होती है कि आस पास का वातावरण धुआं धुआं हो जाता है । कुंड का पानी छोटे छोटे बूंदों के रूप में 150 फिट ऊपर तक आते हैं । बरसात के मौसम में जब यह झरना अपने शक्तिशाली स्वरूप को धारण कर लेता है ,उस समय उपर से अगर कोई इस मनोरम दृश्य को देखे तो , मानो वह देखता हुआ भिंग जाए ।
काव नदी की मां है धुआं कुंड
लगभग 120 फिट ऊपर से धुआं कुंड में गिरने वाला पानी नदी को जन्म देता है, जो युगों युगों से मानव बस्तियों की प्यास बुझाती रही है और अब कई जिलों के किसानों के लिए सिंचाई का साधन है । धुआं कुंड मां की भूमिका में होती है ।
इसी धुआं कुंड का पानी लगभग आधा से 1 किलोमीटर आगे चलने पर पहाड़ से टकरा कर दाएं दिशा में मुड़ने पर मैदानी भाग में काव नदी के नाम से प्रवेश करता है ।
नदी के उद्दम स्थली पर देवी का मंदिर
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को मां या देवी माना गया है । प्रायः सभी नदियों के उद्गम स्थानों पर मंदिर बने हुए मिलते हैं । काव नदी के उद्दम् स्थली धुआं कुंड पर भी नारी शक्ति कि प्रतीक मां दुर्गा का एक मंदिर है ।
सासाराम के टक्साल संगत मुहल्ले के किसी व्यक्ति या समूह द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था । इस मंदिर के पास खड़े होकर पर्यटक झरने का आनंद लेते हैं । यहां पर फोटोग्राफर्स को भी कुंड का सबसे बेस्ट व्यू मिलता है ।
प्राचीन काल में काव नदी के किनारे था मानव सभ्यता
नदिया जीवन देती है और नदियों की धारा के साथ जीवन का भी प्रवाह होता रहता है । कुछ वर्षों पहले ताराचण्डी के पास काव नदी के किनारे हुए खुदाई में प्राचीन काल के कई अवशेष मिले हैं जो कि कभी इसी नदी किनारे मानव सभ्यता के फलने फूलने की ओर इशारा करते हैं ।
चेरो खरवार वंश का इतिहास समेटी है प्राचीन काव नदी
इतिहासकार कहते हैं कि इस नदी का अस्तित्व आदि काल से है । आदि काल से ही कांव नदी के तट पर रोहतास और सासाराम का असली मूलनिवासी/ आदिवासी समुदाय यानी “चेरो खरवार वंश” निवास करता था । पुराना सहसराम शहर भी नदी किनारे ही विकास किया था ।
प्लेग महामारी और काव नदी किनारे सभ्यता
पूर्व काल में एक बार प्लेग जैसी महामारी फैली थी, जिससे बचने के लिए लोगों ने कांव नदी के तट का सहारा लिया था । इसके बाद लोग यहीं बस गये और यह जगह बस्ती के रूप में तब्दील हो गई । काव नदी की तेज़ धारा के कारण लोगों को प्रायः बाढ़ के कारण बरबादी उठानी पड़ती थी , लेकिन आम लोगों के लिए का नदी फलदायी भी उतनी ही थी ।
खेती के लिए काव नदी का उपयोग
काव नदी के किनारे के खेतों की सिंचाई नदी के पानी से हुआ करती है । काव नदी के किनारे सभी तरह की फसलों की खेती होती है लेकिन मुख्य रूप से गेहूं और मटर कि खेती के बारे में 1813 ई. के अंग्रेज इतिहासकारों ने वर्णन किया है , शायद यह उन्हें अधिक पसंद हो ।
काव नदी में सालो भर रहता है पानी
नदी पर अतिक्रमण और प्रकृति के साथ इंसानों के दुर्व्यवहार के बाद भी प्राचीन नदी होने के कारण सालो भर इसमें थोड़ा बहुत पानी रहता है, किसी जगह पर ठेहुने भर रहता है तो किसी जगह हांथी डूबने लायक पानी भी रहता है ,हालांकि बरसात में यह नदी अपने उफान पर रहती है.
अंग्रेजी इतिहासकार 1813 ई. में लिखते हैं कि रोहतास जिला के सूर्यपूरा में नदी की चौड़ाई 50 यार्ड से भी अधिक थी ।
बरसात में काव नदी धारण करती है डायन का रूप
बरसात के मौसम में धुआं कुंड में गिरने वाला पानी इतना खतरनाक होता है कि हम उस शब्दों में बयां नहीं कर सकते । जिसने उस मंजर को देखा है , सिर्फ वही उसे महसूस कर सकता है । कई कई हाथियों को डुबाने का शक्ति होता है ,सासाराम के इस धुआं कुंड में । धारा तो पूछिए ही मत, पानी के धारा की रफ्तार ऐसी होती है कि चलती ट्रेन को भी बहा कर कहां फेक दे उसका अंदाजा लगाना मुश्किल है ।
इसी धुआं कुंड से निकलने वाली काव नदी आस पास के कस्बों में बाढ़ भी लाती है । किनारे पर रहने वाले गांवों पर डायन की तरह कहर बरपाती है । कई कई गांव जलमग्न हो जाते हैं , लोगों को नाव का उपयोग करना पड़ता है । बुजुर्ग बताते हैं कि, आज से 20 वर्ष पहले तक काई नदी के बाढ़ में कई जंगली जानवर भी बह कर दूर दराज तक चले जाते थें ।
काव नदी किनारे बसे प्रमुख शहर और बाज़ार
सासाराम, जमुहार, राजपुर, बिक्रमगंज, सूर्यपूरा दावथ, मलियाबाग, नावानगर, सिकरौल, डुमरांव और बक्सर जैसे शहर और बाज़ार काव नदी किनारे आबाद हो रहे हैं ।
गंगा में विलीन हो जाती है काव नदी
सासाराम के धुआं कुंड से निकलने वाली काव नदी राजपुर, बिक्रमगंज,और डुमरांव के रास्ते भोजपुर के कोकिला ताल में गिरते हुए बक्सर में गंगा नदी में जाकर मिल जाती है । लेकिन यह मिलन काव नदी के रूप में नहीं बल्कि ठोरा नदी के रूप में होती है ।
ठोरा नदी और काव नदी
बक्सर में गंगा नदी में विलीन होने से पहले काव नदी ठोरा नदी में मिल जाती है और इसका नाम भी काव के बदले ठोरा नदी हो जाता है । इलाके में रहने वाले लोग ठोरा नदी ही कहते हैं, ठीक उसी तरह जैसे गंगा नदी बंगाल में हुगली नदी भी कहलाती है ।
ठोरा नदी की कहानी बहुत दिलचस्प है, ठोरा नदी मेरे गांव यानी नोनहर से निकलती है । किद्वांतियों के अनुसार ठोरा नाम के एक ब्रम्हाण थें जो नदी बन गए थे ( इसके बारे में विस्तार से कभी बाद में बताया जाएगा ) । ठोरा नदी का उद्गम स्थल जिला रोहतास के बिक्रमगंज अनुमंडल में पड़ने वाला नोनहर गांव है । मेरे गांव नोनहर में ठोरा बाबा का एक मंदिर भी है ।
काव नदी बस कुछ ही वर्षों की है मेहमान, बचा लीजिए
अगर इस आर्टिकल पर पब्लिक रिस्पॉन्स अच्छा आएगा तो सोमवार को हमलोग “काव नदी का पार्ट 2” भी उपलब्ध कराएंगे , जिसमें काव नदी की दर्द भरी दास्तां बताएंगे और सासाराम से निकलने वाली काव नदी के बहन के बारे में भी बताएंगे ।