Tuesday, November 19, 2024
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तो क्या धीरे धीरे देश से गुमनाम हो रहा है सासाराम ? उधर मेट्रो बनेगा ,इधर ट्रैफिक लाइट भी काम नहीं करता ! Downgrading Sasaram slowly slowly 2024

गया को छोड़ दें तो पिछले 10-15 वर्षों में भागलपुर, दरभंगा और मुजफ्फरपुर ने हर क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह सराहनीय है। एक समय था जब पटना और गया के बाद सासाराम का नाम मुजफ्फरपुर और दरभंगा के साथ लिया जाता था और अधिकांश घोषणाएं सासाराम के हिस्से में आती थीं।

Downgrading Sasaram slowly slowly1971 में पकिस्तान को दो फाड़ करने के लिए मां भारती को बहादुर रक्षामंत्री देने वाला सासाराम अब अपने स्वर्णिम काल से गुमनामी के दौर में प्रवेश कर चुका है । हमारे शहर में जातियों, धर्मों और पार्टियों के तो बहुत नेता हैं लेकिन शहर के लिए काम करने वाला कोई नहीं है । एक दो हैं भी तो पब्लिक सपोर्ट नहीं मिलने के कारण गुमनाम हैं ।

उधर मेट्रो बनेगा ,इधर ट्रैफिक लाइट भी काम नहीं करता

बिहार के विकासशील शहरों में सासाराम इतना पिछड़ चुका है कि एकतरफ जब उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर, दरभंगा ,भागलपुर जैसे शहर एयरपोर्ट ,मेट्रो जैसी सुविधाओं के साथ अगली पीढ़ी के लिए तैयार हो रहें है तो दूसरी तरफ ऐतिहासिक सासाराम अभी ट्रैफिक लाइटों के सुचारू ढंग से काम करने के लिए भी वेटिंग लिस्ट में फंसा हुआ है ।

पिछले 10 वर्षों में सासाराम को 2 सौगात मिले                                                        

कैमूर व रोहतास के किसानों के खेतों की सिचाई के लिए 1976 में तत्कालीन उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम ने दुर्गावती परियोजना की नींव रखी था। वह 2014 में पूरा हुआ । मीरा कुमार का बहुत महत्वपूर्ण योगदान था इसमें ।

छेदी पासवान के कार्यकाल में 14 नवंबर 2022 को सासाराम लोकसभा के नौहट्टा में 210 रूपये के पंडुका पुल का सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा शिलान्यास हुआ । पुल बन जाने से पंडुका से झारखंड के गढ़वा की दूरी 200 किमी से घटकर 63 किमी हो जाएगी ।

सासाराम इतना पीछे चला गया है कि रिकवरी में वर्षो लगेंगे !

हम ऐसे ही नहीं कह रहे हैं, दूरदृष्टी का अनुभव है । जैसे इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान हमने एक महीना पहले ही काराकाट,सासाराम, बक्सर,औरंगाबाद,आरा का 100% सटीक एक्जिट पोल दिया था ।

पैटर्न एनालिसिस और अनुभव से दूरदृष्टी

exit poll sasaram ki galiyan 2024 loksabha
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हम यूं ही नहीं कह रहे हैं, दूरदृष्टि का गहन अनुभव है। जैसे, हाल के लोकसभा चुनाव के दौरान हमने एक महीना पहले ही काराकाट, सासाराम, बक्सर, औरंगाबाद और आरा का 100% सटीक एक्जिट पोल दे दिया था।
लगभग 15 दिन पहले हमने बताया था कि अंतिम दौर में काराकाट में सोशल इंजीनियरिंग कैसे बदलने लगेगी और राजा राम सिंह जीतेंगे, सासाराम में मनोज राम की लहर अचानक से तेज हो जाएगी ।

आरा ,बक्सर में बदला लिया जाएगा । औरंगाबाद प्रतिष्ठा की सीट बन गई थी .. गिव एंड टेक का सिद्धांत फेल हो रहा था। काराकाट घूमने का शिवहर में आनंद मोहन को फायदा मिलेगा । यह सभी पूर्वानुमान बिल्कुल सही साबित हुए। उस समय लोगों ने क्या-क्या बातें कीं थीं।

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लेकिन क्योंकि यह हमारे व्यक्तिगत पसंद-नापसंद से परे, एक प्रोफेशनल और न्यूट्रल एनालिसिस था, और न्यूट्रल एनालिसिस का परिणाम हमेशा सही होता है। इसीलिए यह पूर्वानुमान सही निकले। वैसे ही ये बाते भी सही निकलेंगी क्यूंकि पैटर्न साफ साफ दिख रहा है हमें ।

मेट्रो की सैद्धांतिक मंजूरी वाले शहरों से सासाराम गायब

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के भागलपुर, दरभंगा, मुजफ्फरपुर और गया में मेट्रो चलाने की सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है। अब मंजूरी मिल चुकी है, तो यह तय है कि पटना के बाद मेट्रो इन शहरों में ही बनेगी, चाहे इसमें थोड़ा समय क्यों न लगे ।

मेडिकल कॉलेजो की लिस्ट से भी सासाराम गायब

सीतामढ़ी, झंझारपुर, सीवान, समस्तीपुर, सारण, बक्सर, जमुई, बेगूसराय, वैशाली और भोजपुर में नए मेडीकल कॉलेज बनेंगे । इस लिस्ट से भी सासाराम का नाम गायब है।

बिजनेस और विकास पर प्रभाव

अब से लेकर आने वाले कई वर्षों तक बड़े उद्योगपतियों और ब्रांड्स की नजरें इन चार शहरों पर टिकी रहेंगी। भले ही वे बड़े उद्योग न लगाएं, लेकिन प्रोडक्ट आउटलेट्स खोलने के लिए इन शहरों को प्राथमिकता देंगे। आउटलेट्स और शोरूम न केवल शहर का विकास करते हैं, बल्कि ये सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार भी प्रदान करते हैं। इसके साथ ही, ये अन्य सेक्टरों को भी प्रभावित करते हैं। इससे लोगों का जीवन स्तर सुधरता है, और अच्छे सड़क नेटवर्क से लेकर ओला, उबर जैसी सेवाओं का आकर्षण बढ़ता है ।

पटना के बाद ये चार शहर बनेंगे प्रमुख केंद्र

गया को छोड़ दें तो पिछले 10-15 वर्षों में भागलपुर, दरभंगा और मुजफ्फरपुर ने हर क्षेत्र में जो प्रगति की है, वह सराहनीय है। एक समय था जब पटना और गया के बाद सासाराम का नाम मुजफ्फरपुर और दरभंगा के साथ लिया जाता था और अधिकांश घोषणाएं सासाराम के हिस्से में आती थीं।

सासाराम का नाम भी पीछे चला गया

डीएम धर्मेंद्र सिंह के कार्यकाल से सासाराम (रोहतास) लिखने का चलन जब सिर्फ रोहतास में परिवर्तित हुआ तो किसी ने नोटिस नहीं लिया । यह एक बहुत बड़ा बदलाव था , इस शहर के शोहरत के लिए लेकिन अखबार से लेकर आम लोगों तक ! … सबने मौन स्वीकृति प्रदान किया ।

भविष्य की चुनौती

अफसोस है कि, यदि पिछले 15-20 वर्षों के पैटर्न पर गौर करें, तो यह संभावना है कि अगले 5 वर्षों में सासाराम बिजली, पानी, और साफ-सफाई के मामलों में और पिछड़ सकता है। इसका मुख्य कारण है, बैक सपोर्ट का खत्म होना ।

हर बजट में सासाराम की भागीदारी हुआ करती थी

2014 तक हर रेल या वित्तीय बजट में सासाराम का नाम अक्सर सुनने को मिलता था। रेल लाइन से लेकर ट्रेनों के स्टॉपेज और एयरपोर्ट तक के चर्चे होते थे। लोग सासाराम के विकास के सवाल जबाब करते थे और उम्मीदें जताते थे।

अब का सासाराम  | Downgrading Sasaram slowly slowly

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रक्षामंत्री जगजीवन राम के कार्यकाल में वर्ष 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक सरेंडर करते हुए

लेकिन आज, सासाराम की हालत देखिए शहर के बीचों-बीच रस्सी बंधी हुई है, नालियां जाम हैं, गलियां पाइप डालने के नाम पर खोदकर बर्बाद कर दी गई हैं। कोई पूछने वाला नहीं है। हालांकि सांसद नए हैं, उन पर सवाल उठाना नैतिक नहीं होगा। लेकिन सासाराम की मौजूदा स्थिति के लिए विधायक, नगर निगम और नागरिकों को गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।

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