शेरशाह उत्तर भारत के एक बड़े भूभाग के शासक थें । इनका कार्यकाल भी आम जनों के लिए सुखद था , अपने 5 वर्षों के शासन काल में शेरशाह ने अनेकों जन कल्याणकारी कार्य किए थे ।
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शेरशाह कि मृत्यु
1545 में राजपूतों के कालिंजर साम्राज्य और किला को हासिल करने के लिए युद्ध के क्रम में चंदेल राजपूतों से लड़ते हुए तोप का गोला वापस लगने के कारण शेरशाह की मृत्यु हो गई थी ।
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सलीम शाह सुरी कि ताजपोशी
शेरशाह सूरी के मृत्यु के बाद उनका पुत्र इस्लाम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) उत्तर भारत के गद्दी का उत्तराधिकारी बना । इस्लाम शाह का वास्तविक नाम जलाल खान था । इसका एक और नाम था सलीम शाह सुरी ( Salim Shah Suri ) । वह शेरशाह सूरी का पुत्र था। उसने आठ वर्ष (1545–1553) उत्तर भारत पर शासन किया।
ग्वालियर किला शेरशाह ने जीता था, इस्लाम शाह के लिए वरदान बना
सन् 727 ई में सूर्यसेन नामक एक सरदार ने ग्वालियर किला बनवाया था । इस पर कई राजपूत राजाओं ने राज किया, 989 वर्षों तक पाल वंश ने राज किया , फिर प्रतिहारो ने भी राज किया । मोहम्मद गजनी ने हमला किया लेकिन , हार का सामना करना पड़ा ।
बाद में अन्य कुतुबुद्दीन ऐबक , इल्तुतमिश , महाराजा देवरम, मान सिंह, बाबर ने राज किया । शेरशाह सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को हराकर इस किले को अपने कब्जे में ले लिया था ।
इस्लाम शाह ने दिल्ली कि जगह ग्वालियर को बनाया राजधानी
पूर्व का जिब्राल्टर कहे जाने वाले अजेय ग्वालियर दुर्ग को देश की राजधानी होने का गौरव भी मिल चुका है । अफगानिस्तान से आए हसन शाह सुरी के पोते और शेर शाह सूरी के बेटे इस्लाम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) ने लगातार हमलों से सल्तनत को सुरक्षित करने के मकसद से इस अजेय दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया था।
दिल्ली का प्रधानमंत्री हेमू को बना दिया था । खुद ग्वालियर से बैठ कर सामरिक योजनाओं का संचालन करने लगा था।हालांकि अपनी अजेय बनावट औऱ सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से ग्वालियर दुर्ग, सातवीं शताब्दी से ही महत्वपूर्ण रहा है । हर बाहरी आक्रमणकारी की महत्वाकांक्षा ग्वालियर दुर्ग पर शासन करने की रहती थी।
इसकी वजह थी कि, यह दुर्ग भारत क दक्षिण की ओर के युद्ध अभियानों के लिए सुरक्षित ठिकाना माना जाता था। इसीलिए हुमायूं से जहांगीर तक मुगल शासकों ने इस दुर्ग को खास दर्जा दिया था। जहांगीर और हुमायूं ने तो ग्वालियर किले पर कई बार दरबार भी लगाया था।
इस्लाम शाह सुरी का कार्यकाल | Islam Shah Suri Regime
राजनैतिक स्थिति
- इस्लाम शाह सुरी को इतिहासकार शेरशाह सूरी से अलग मानते हैं । शेरशाह सूरी को लिबरल और फ्लेक्सिबल और भरोसामंद माना जाता है जबकि इस्लाम शाह इसके उलट क्रूर, कट्टर सांप्रदायिक,अड़ियल था ।
- शेरशाह ने मात्र 5 साल में बहुत सारे विकास के कार्य किए, जबकि इस्लाम शाह 8 वर्षों में भी कुछ ऐसा जन कल्याणकारी कार्य नहीं किया जिसको याद किया जा सके ।
- इस्लाम शाह सुरी दुश्मनों के प्रति कठोर तथा क्रूर था ।
- अगर इस्लाम शाह जीवित रहता ( मृत्यु आगे पढ़ेंगे) तो हुमायूं कभी भी उत्तर भारत पर हमले कि हिम्मत नहीं करता और मुगल साम्राज्य दोबारा वापसी नहीं करता ।
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सामाजिक स्थिति
- शेरशाह सूरी का बनाया हुआ सामाजिक ताना बाना इस्लाम शाह सुरी के समय थोडा कमजोर हो गया , फिर भी अधिकांस मुगलों या अंग्रेजो से ठीक था ।
- शेरशाह ने हिन्दुओं ( बौद्ध+ सिक्ख+जैन+ हिन्दू तब एक ही माने जाते थे, आजादी के बाद अलग धर्म का दर्जा मिला, लेकिन शादी के कानून अभी भी एक ही है “हिन्दू मैरिज एक्ट”) से लिया जाने वाला जजिया टैक्स नहीं हटाया था, इस्लाम शाह ने भी जारी रखा । हालंकि कहा जाता है कि, शेरशाह और कुछ दिन राजा रहता तो जजिया को हटा लेते ।
क्या जजिया और जकात एक ही है ?
- नहीं, जकात इस्लाम में दान दक्षिणा की तरह अच्छी चीज है , जो स्वेक्षा से दिया जाता है और यह धार्मिक रिवाज है, इसका धार्मिक महत्व भी है, इसे समाज के भले में लगाया जाता है , जैसे हिन्दुओं में दान दक्षिणा का महत्व है ।
- जबकि, जजिया हिन्दुओं से धार्मिक आधार पर लिया जाने वाला जबरदस्ती टैक्स था, स्वैक्षिक नहीं था, और यह सरकार लेती थी ।
- अकबर ने इसे कुछ वर्षों के लिए ख़तम कर दिया था, लेकिन बाद में पुनः लागू हो गया ।
- शेरशाह सूरी ने देश के विकास के लिए बहुत कुछ किया, इस्लाम शाह इसमें पीछे रह गया ।
- इस्लाम शाह भले ही शेरशाह जैसा नहीं था, लेकिन बाबर,औरंगजेब जैसे मुगल आक्रांताओं या अंग्रेजो से ठीक था, उसने धार्मिक स्थल नहीं तोड़े और बहुत हद तक शेरशाह के सुरी सम्राज्य को सुरक्षित भी रखा और धार्मिक तौर पर कट्टर रहते हुए बहुत हद तक मिला जुला कर चलने का कोशिश किया ( उसने हेमू को प्रधानमंत्री बनाया ), हो सकता था कि धीरे धीरे अनुभव बढ़ते तो व्यवहार में अंतर आता ।
आर्थिक स्थिति
- इस्लाम शाह सुरी के समय अर्थव्यवस्था नॉर्मल था ।
- शेरशाह के कार्यकाल कि तरह अर्थव्यवस्था का तेज रफ्तार विकास इस्लाम शाह सुरी के समय नहीं था । जैसा शेरशाह छोड़ कर गया था, वैसा ही था ।
- इस्लाम शाह सुरी ने का अर्थव्यवस्था के मामले में कोई खास उपलब्धि हासिल नहीं किया जैसा इसके पिता शेरशाह सूरी ने किया था ।
इस्लाम शाह सुरी कि मृत्यु
इस्लाम शाह सुरी पर ग्वालियर के इतिहास लेखक हरिहर निवास द्विवेदी के मुताबिक किसी खतरनाक बीमारी से इस्लाम शाह की मौत के बाद उसका पुत्र फिरोज शाह शासक बना, लेकिन असल बागडोर हेमू के हाथ में आ गया ।
इस्लाम शाह सुरी के बेटे फिरोज शाह सुरी का कत्ल
सलीम शाह सुरी ( Islam Shah Suri ) के मृत्यु के बाद फिरोज शाह सुरी के गद्दी पर बैठने के कुछ ही दिन बाद शेरशाह सुरी के भतीजे मुहम्मद मुबरीज़ द्वारा फिरोज शाह सुरी ( शेरशाह सूरी का पोता ) को मौत के घाट उतार दिया गया, एवं मुबरीज़ ने मुहम्मद शाह आदिल के नाम से शासन किया।
इस्लाम शाह सुरी का मकबरा
बिहार के सासाराम में तकिया मुहल्ले में इस्लाम शाह का अर्धनिर्मित मक़बरा मौजूद है । यह मकबरा इस्लाम शाह सुरी अपने लिए बनवा रहा था , लेकिन उसके जीवन काल में पूर्ण नहीं हो सका ।
इस्लाम शाह सुरी के बेटे फिरोज शाह सुरी का भी कार्यकाल बहुत कम समय के लिए रहा और उम्र भी उसकी कम थी,
इसलिए वह भी इस मकबरे का निर्माण पूर्ण कराने में सफल नहीं रहा । इसलिए यह मक़बरा अर्धनिर्मित स्थिति में ही रह गया ।
इस्लाम शाह सुरी का कब्र
इस्लाम शाह के मकबरा ,तकिया ,सासाराम में खुले में दफनाया गया शव ,बादशाह इस्लाम शाह का नहीं हैं , यह स्थानीय या अन्य लोगों का है ।
इस्लाम शाह सुरी अपने जीवन काल में निर्माणाधीन मक़बरा को पूर्ण नहीं करा सका था l
इसलिए इस्लाम शाह (Islam Shah Suri) को शेरशाह सुरी के मकबरा में ही दफ़न किया गया है । इस मकबरे में शेरशाह का लगभग पूरा परिवार मौजूद है ।
अपिल
सुरीवंश के दूसरे बादशाह और सासाराम के लाल इस्लाम शाह सुरी के सम्मान में यह पोस्ट अधिक से अधिक शेयर करें , ताकि हमारी युवा पीढ़ी अपने पूर्वजों और इतिहास को जान सके और सरकार इस्लाम शाह सुरी के मकबरे को नष्ट होने से बचाए तथा संरक्षित करे तथा पर्यटन को बढ़ावा दे ।