Thursday, November 21, 2024
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सासाराम में धधकी थी अगस्त क्रांति की ज्वाला – Sasaram Ki Galiyan

क्रांति की ज्वाला में जब देश में हर तरफ अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत का स्वर बुलंद हो रहा था, उस समय सासाराम में भी क्रांति की ज्वाला धधक रही थी। 11 अगस्त 1942 को सासाराम के छात्र व नौजवानों का विशाल समूह जनक्रांति में बदल गया। सासाराम रेलवे स्टेशन जला दिया गया। संचार व्यवस्था भंग कर दी गई और सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा लहरा दिया गया।

12 अगस्त को डॉ. रामसुभग ¨सह के नेतृत्व में हजारों छात्रों के आने से क्रांति हुंकार भरने लगी। टाउन हाईस्कूल सासाराम के गेट पर सूर्यमल, तारा ¨सह, जगदीश प्रसाद, निरंतर ¨सह, रामनाथ रस्तोगी व इंद्रदमन पाठक के नेतृत्व में छात्रों ने धरना देकर स्कूल बंद करा दिया।

लेकिन अंग्रेजों से सहानुभूति रखने वाले एक सिद्दिकी नामक शिक्षक ने छात्रों में फूट पैदा कर दी। इस पर नियंत्रण के लिए 13 अगस्त को दानापुर से फौजियों का दल आ धमका। एसडीएम मार्टिन ने भीड़ पर लाठी चार्ज करा दिया। बचरी निवासी जगदीश प्रसाद नामक छात्र को सीधे गोली मार दी। जिससे भीड़ हिंसक हो गई। धर्मशाला चौक पर गोरी फौज व विद्रोहियों में भयंकर मुठभेड़ हो गई। यहां हुई फायरिंग में आजादी के तीन दीवाने सासाराम के महंगू राम, जगन्नाथ राम चौरसिया व कउपा के जयराम सिंह गोली खाकर शहीद हो गए। इसके अलावा दो अन्य लक्ष्मण अहीर व बंशी प्रसाद वकील ने भी अपनी शहादत दी थी।

जिले के अन्य भागों में भी हुआ विद्रोह :

10 अगस्त को डेहरी हाई स्कूल के छात्रों ने विद्यालय का बहिष्कार कर दिया। 13 अगस्त को डालमियानगर में किसान, मजदूर व छात्र संगठनों ने विशाल प्रदर्शन किया। रेलवे स्टेशन में आग लगा दी गई, मालगोदाम लूट लिया गया। उसी दिन तिलौथू में छात्र नेता ब्रजबिहारी दूबे के नेतृत्व में छात्रों ने हड़ताल कर डाकखाना जला दी। ढाई माह तक रोहतास, अकबरपुर, बंजारी व कैमूर के पर्वतीय क्षेत्रों में घूम-घूमकर क्रांति की ज्वाला फैलाते रहे। 11 अगस्त को अकबरपुर में परमानंद मिश्र के नेतृत्व में बकनउरा गांव में धरमू ¨सह, शिवविलास श्रीवास्तव, सरयू प्रसाद अग्रवाल समेत अन्य लोगों ने थाने पर धावा बोल कब्जा कर लिया। लेकिन 12 अगस्त को ये सभी गिरफ्तार कर लिए गए।

उपेक्षित है स्मारक :

स्वतंत्रता के इन अमर सेनानियों का स्मारक आज उपेक्षा का शिकार है। स्मारक के चारों ओर ठेला-खोमचा वालों का अघोषित कब्जा है। दुकानदारों द्वारा फलों के छिलके व कचरे स्मारक के पास फेंक दिए जा रहे हैं। स्मारक पर 15 अगस्त व 26 जनवरी को माल्यार्पण की रस्मअदायगी भर की जाती है। अधिकतर लोगों को शायद यह भी नहीं मालूम कि वे जहां खड़ा होकर गंदगी फैला रहे हैं, उस जगह पर देश को आजाद कराने के लिए आजादी के मतवालों ने कभी अपने खून की होली खेली थी।

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