सहसराम के सूरी वंश के सेनापति हेमचंद्र उर्फ हेमू मध्य काल में दिल्ली की गद्दी पर बैठने वाले एकमात्र हिंदू राजा थे। वे सूरी वंश के पतन के पश्चात और अकबर से पूर्व दिल्ली की गद्दी पर बैठे थे।
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हेमू रौनियार वैश्य वर्ग से थें, सासाराम में इतिहासकार का प्रेस कांफ्रेंस
हेमू के पिता का नाम मधु साह था और वे रौनियार वैश्य थे। यह जानकारी ‘हेमू कौन था’ के लेखक दिल्ली निवासी इंजीनियर और मध्यकालीन इतिहासकार सुबोध गुप्ता ने सासाराम के निराला साहित्य मंदिर में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दी।
सासाराम का बनिया था सम्राट हेमचंद हेमू
उन्होंने आगे कहा कि हेमू को लेकर तमाम किंवदंतियां हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि वह अलवर या रेवाड़ी का था तो कुछ विद्वानों का मानना है कि वह सहसराम का था। कुछ लोग मानते हैं कि वह भार्गव ब्राह्मण था जबकि मध्यकालीन इतिहासकारों ने उसे बनिया बक्काल कहा है।
राहुल सांकृत्यायन और डॉक्टर राजबली पांडे ने भी अपने शोधों में हेमू को सहसराम का बनिया माना था। प्रसिद्ध विद्वान डॉक्टर नंदकिशोर तिवारी जी भी अपने एक लेख में हेमचंद्र उर्फ हेमू को सहसराम का माना है।
‘रोहतास का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास’ के लेखक डॉ० श्याम सुंदर तिवारी ने भी यह निष्कर्ष दिया है कि हेमू साहसराम का था और रौनियार वैश्य था। इस पर उन्होंने एक अलग अध्याय ही लिखा है।
‘आखिर कौन था हेमू’ पुस्तक जरूर पढ़ें
किंतु हेमू के संबंध में ‘आखिर कौन था हेमू’ पुस्तक में मध्यकालीन भारत के तमाम संदर्भों और 800 से अधिक ग्रंथों का अध्ययन करके निष्कर्ष दिया गया है। अब यह पूरी तरह सिद्ध है हेमू सहसराम का था और रौनियार वैश्य था।
सम्राट हेमचंद का जन्म हरियाणा में, लेकिन बचपन सासाराम में गुजरा
वैसे उसका जन्म हरियाणा में हुआ था किंतु बाल्यावस्था में ही उसके पिता शेरशाह के समय सासाराम में आ चुके थे।
शेरशाह सूरी का भरोसेमंद साथी
हेमू सासाराम में ही पले-बढ़े और इसे ही अपना कर्म क्षेत्र बनाया। सबसे पहले उसने शेरशाह सूरी का कोष विभाग संभाला।
सलीम शाह सूरी ने हेमू को सेनापति बनाया
इस्लाम शाह सूरी उर्फ सलीम शाह सूरी ने उन्हें अपना सेनापति बनाया। उसके पुत्र फिरोज शाह ने अपना सेनापति बनाए रखा।
आदिलशाह ने भी हेमू पर भरोसा जताया और सेनापति बनाया
फिरोज का कत्ल करने के पश्चात जब उसका मामा आदिलशाह गद्दी पर बैठा तो उसने भी अपने पूर्वजों की तरह हेमचंद्र उर्फ हेमू को अपना सेनापति बना दिया ।
हेमचंद अब विक्रमादित्य बनकर दिल्ली का सम्राट बना
आदिल शाह जब चुनार किले में अपने को सीमित कर लिया तो राज्य का पूरा भाग भार हेमू के कंधों पर ही था। उन्होंने 24 से अधिक लड़ाइयां लड़ीं। अंतिम युद्ध को छोड़कर सब में विजय प्राप्त की। इसके पश्चात वे दिल्ली की गद्दी पर बैठे और अंतिम विक्रमादित्य के रूप में अपना संस्कार कराया।
मुगलों ने धोखे से हेमू को पकड़ा और शहिद किया
पानीपत की लड़ाई में उनके महावत द्वारा धोखे से उनकी आंख में तीर मारा गया और इस तरह विदेशी आक्रमणकारी तथा क्रूर मुगल सेना विजई रही। हेमू पकड़े गए और आक्रांता अकबर के हाथों वीरगति को प्राप्त हुए।
शेरशाह के सूरी वंश का अंत हुआ
इस तरह सूरीवंश का अंत हुआ । इस अवसर पर डॉ नंदकिशोर तिवारी, डॉ श्याम सुंदर तिवारी, ददन पांडे, राजू दुबे, ब्रजेश कुमार, अजीत कुमार, धनंजय पाठक, रवि भूषण साहु, मंगलानंद, गुप्तेश्वर प्रसाद गुप्ता मौजूद थे।
सासाराम में हेमू विक्रमादित्य की मूर्ति की मांग
सुबोध गुप्ता का स्वागत रौनियार धर्मशाला, बौलिया रोड़, सासाराम में अंगवस्त्र प्रदान कर किया गया। उन्होंने कहा कि सहसराम की पहचान सूरी वंश और शेरशाह सूरी की नगरी के रूप में है किन्तु यहां के लोग पंचम विक्रमादित्य हेमचंद्र उर्फ हेमू के बारे में नहीं जानते हैं जबकि वे सहसराम के थे। अतः उनकी एक आदमकद प्रतिमा यहां स्थापित होनी चाहिए। अब यह यह जागृति पैदा हो रही है।
नोट : आपको बताते चलें कि “कौन था हेमू” पुस्तक पढ़ने के बाद और अन्य किताबो को पढ़ कर “सासाराम कि गलियां” अपने तरफ से राजा हेमू विक्रमादित्य पर एक डिटेल और रोचक लेख जल्द ही लेकर आएगा जैसा शेरशाह, सलीम शाह, निसान सिंह, लोहा सिंह, शहिद डीएफओ संजय सिंह,अशोक शिलालेख,छोटी लाइन इत्यादि पर पब्लिश किया गया है वैसा ही ।