वास्तुकला का अद्भुत संगम देखना हो तो सासाराम का ‘ हसन शाह सुरी का मक़बरा’ अर्थात ‘सूखा रौजा’ एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है। यहां का वास्तुशिल्प और मकबरे के अंदर बनाई गई वास्तुकला ,वास्तुप्रेमियों को खूब लुभाती है । अगर आपको भी किसी ऐसी ही जगह की तलाश है तो इस वीकेंड्स का प्लान कर सकते हैं । साथ ही इस शानदार जगह की यादगार ट्रिप को अपनी ट्रैवल मेमोरी का हिस्सा बना सकते हैं ।
हसन शाह सुरी का मकबरा (Hasan Shah Suri Tomb ) बिहार के सासाराम शहर में स्थित है । यह मकबरा इंडो अफगान वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है । इसे स्थानीय लोग सूखा रौजा भी कहते हैं, मुख्य रूप से यह इसी नाम से मशहूर है ।
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कौन था हसन शाह सुरी ?
हसन शाह सुरी अफगानिस्तान से आए हुए एक अफगान पश्तून ( पठान) थें । दरसल, हसन शाह के पिता इब्राहिम शाह सुरी अफगानिस्तान से भारत के पंजाब हरियाणा राज्य में आए थें और वह घोड़ा का व्यापार करते थे । इसमें इन्हे बहुत सफलता नहीं मिली , इसलिए इब्राहिम और हसन शाह सुरी दोनों सेना में शामिल हो गए और पंजाब के बजवरा में बस गए ।
शिकंदर लोधी के समय हसन शाह सुरी अपने बॉस /अधिकारी / मालिक जमाल खान के साथ जौनपुर आए । यहीं पर उन्हें सासाराम का जागीरदार बना दिया गया ।
हसन शाह सुरी की 4 बिबियां थी । पहली बीवी से जन्मा फरीद खान जो कि बड़ा बेटा था , आगे चल कर शेरशाह सूरी के नाम से मशहूर हुआ और इसने उत्तर भारत पर हुकूमत की । इसका कार्यकाल उत्तर भारत के शानदार कार्यकालों में गिना जाता है । भारत का वो बादशाह , जिसके डर से हुमायूँ 15 साल बाहर रहा हिंदुस्तान से : Click To Read
किसने बनवाया था सूखा रौजा ?
बादशाह शेरशाह सुरी ने अपने पिता हसन शाह सुरी के लिए सूखा रौजा अर्थात हसन शाह सुरी का मकबरा ( Hasan Shah Suri Tomb ) का निर्माण करवाया था । इस मकबरा का मुख्य आर्किटेक्ट वास्तुकार मीर मुहम्मद अलीवाल खान था , आपको बताते चलें कि बाद में इसी अलावल खान ने ही विश्व विख्यात शेरशाह सूरी मकबरा को भी डिजाइन किया था ।
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इस मक़बरा के कुछ हिस्सों को हसन शाह सुरी का पोता ( यानी शेरशाह सूरी का पुत्र ) बादशाह इस्लाम शाह सुरी अर्थात सलीम शाह सुरी ने भी बनवाया था । इसलिए इतिहासकारों द्वारा मकबरे का निर्माण 1535 में शुरू हुआ और 1545 में पूर्ण हुआ माना गया है ।
हसन शाह सुरी मकबरा का बनावट
लाल बलुआ पत्थर का यह मकबरा एक वर्गाकार पत्थर के केंद्र में खड़ा है जिसके गुंबदनुमा कियोस्क, पत्थर के किनारों और इसके प्रत्येक कोने पर छतरियों के साथ एक चौकोर पत्थर की चौखट पर एक कृत्रिम झील है, जो चौड़ी तरफ से मुख्य भूमि से जुड़ी हुई है ।
मुख्य मकबरे में एक बड़ा अष्टकोणीय मकबरा कक्ष है जो चारों तरफ चौड़े बरामदे से घिरा हुआ है। आठ पक्षों में से प्रत्येक पर, बरामदा तीन धनुषाकार उद्घाटन और इसके ऊपर तीन संबंधित गुंबदों के साथ प्रदान किया जाता है। मुख्य मकबरा कक्ष बरामदे की गुंबददार छतों की तुलना में ऊंचा है ।
भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है सूखा रौजा
हसन शाह सूरी का मकबरा पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय इमारत है । वर्तमान में यह मकबरा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है और यह भारत सरकार की संपत्ति है ।
मुख्य इमारत बंद रहता है, लेकिन बाकी सब फ़्री में घूमिए
सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता का शिकार सूखा रौजा का मुख्य इमारत जिसके अंदर कब्र हैं , प्रायः आम नागरिकों और पर्यटकों के लिए बंद रहता है ।
हालांकि , मुख्य इमारत को छोड़कर इसका कैंपस घुमा जा सकता है और बाहर से मकबरा का दीदार किया का सकता है । घूमने के लिए टिकट सिस्टम की व्यवस्था नहीं है,मतलब यहां घूमना फ्री है । मुख्य इमारत खास मौकों पर खोला जाता है ।
हसन शाह सुरी की बावली
हसन शाह सुरी के चारदीवारी के अंदर एक छोटी सी बावली भी मौजूद है । हाता के अंदर से ही इसका प्रवेश द्वार है । मुख्य रूप से नमाज़ से पहले हाथ ढोने के रश्म के लिए इस बावली का उपयोग किया जाता था ।
शाही मस्जिद
सूखा रौजा के चारदीवारी में एक पुरानी मस्जिद भी स्थित है । आस पास के लोग इस मस्जिद को अभी भी उपयोग करते हैं और यह खुला रहता है । यह मस्जिद भी प्राचीन है ।
कब और कैसे पहुंचे हसन शाह सुरी का मक़बरा घूमने
रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम रेल नेटवर्क से वेल कनेक्टेड है । आस पास के राज्यों से बस सेवा भी उपलब्ध रहती है । आप सासाराम पहुंच कर ई रिक्शा या ऑटो के माध्यम से सूखा रौजा पहुंच सकते हैं । सूखा रौजा घूमने का कोई खास मौसम नहीं है, आप साल के किसी भी मौसम और महीना में यहां घूमने आ सकते हैं ।
हसन शाह सुरी का मकबरा सासाराम के शेर मुहल्ले में स्थित है । यह शेरशाह सूरी मकबरा ( पानी रौजा) के एकदम नजदीक है ।