सासाराम के कैमूर पहाड़ी पर स्थित मांझर कुंड अपनी मनोरम सुंदरता के लिए दूर दूर तक विख्यात है । बरसात मौसम के आगमन के साथ ही पर्यटकों की आमद भी बढ़ जाती है। मांझर कुंड सदियों से प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है । मांझर कुंड आकर लोग प्रकृति के मधुर ध्वनियों को करीब से सुन पाते हैं । पहाड़ियों से कल कल करते गिरते हुए पानी को निहारना अद्भुत रोमांचक एहसास देता है ।
विंध्याचल रेंज के कैमूर पर्वत श्रृंखला में सवा तीन किमी की परिधि में अवस्थित मांझर कुंड राज्य के रमणीक स्थानों में महत्व रखता हैं । पहाड़ियों पर काव एवं कुदरा नदी का संयुक्त पानी एक धारा बना कर टेढ़े मेढे रास्तों से गुजरते हुए मांझर कुंड के जलप्रपात में इकट्ठा होता है । उपर से बहने वाला पानी झरना के रूप में जमीन पर गिरता है । ये प्राकृतिक छटा आंखों को सुकून देती है ।
इस जलप्रपात को महसूस करने के लिए सासाराम जिले के साथ ही कैमूर, भोजपुर, औरंगाबाद और पटना के अलावे देश के अन्य राज्यों से भी पर्यटक पहुंचते है ।
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मांझर कुंड का सिक्खों और हिन्दुओं के लिए धार्मिक महत्व
मांझर कुंड सिक्ख और हिन्दू धर्म के लिए धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है । आपको बताते चलें कि आजादी के कुछ वर्षों बाद तक हिन्दू और सिक्ख एक ही धर्म हुआ करते थें , लेकिन बाद में सिक्ख समुदाय को अलग धार्मिक स्टेटस मिल गया, इस कारण हम इन दोनों के धार्मिक महत्वों को अलग अलग बता रहे हैं ।
- सनातन संस्कृति में महत्व
अनादि काल से ही साधु संतो और ऋषि मुनियों के लिए प्रकृति और एकांत वातावरण साधना के केंद्र रहे हैं । कैमूर पहाड़ी पर सासाराम और आस पास के इलाकों में कई साधु संतो के ध्यान एवम् साधना केंद्र मौजूद हैं । कई संत मोक्ष प्राप्त कर चुके है , जबकि उनके चेले अभी भी साधना करते हैं । मांझर कुंड के पास भी कई साधु संतो के कुटिया के रूप में इमारतें मौजूद हैं ।
- सिक्खों के लिए महत्वपूर्ण
सिक्ख इतिहास के अनुसार सिखों के एक गुरु ने रक्षाबंधन के अगले सप्ताह में अपने अनुयाइयों के साथ उक्त मनोरम स्थल पर अपनी रात बिताई थी । तभी से यहां पर सिख समुदाय के लिए तीन दिनों तक तीर्थ के रूप में परम्परा का विकास हो गया । रक्षाबंधन के बाद पड़ने वाले पहले रविवार को यहां गुरुग्रंथ साहब को ले जाने की परंपरा है ।
पूर्व काल में सिख समुदाय के लोग सपरिवार तीन दिनों तक मांझर कुंड पर प्रवास करते थे । इस मौके पर बिहार के अलावा देश के अन्य राज्यों से भी सैलानी पहुंचते और पिकनिक मनाते थे । कई लोग आसपास के पहाड़ी पर अपने मन पसंद का भोजन पका कर लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठाते थे तो कुछ लोग खाने-पीने का रेडिमेड सामान लेकर भी आते थें ।
कुंड के जल में औषधीय गुण होने के कारण यह जल भोजन पचाने में काफी सहायक सिद्ध होता है । धीरे-धीरे यह मौका धार्मिक बन्धनों को तोड़कर आम लोगों के लिए पिकनिक स्थल बनता चला गया । अब और बड़ी संख्या में पर्यटक जुटने लगे हैं ।
मांझर कुंड के बुरे दिन
सत्तर और अस्सी के दशक में कैमूर पहाड़ी पर दस्युओं द्वारा ठिकाना बना लेने और बाद में नक्सलियों के पैर जमने के कारण पिकनिक मनाने वालों की आवाजाही लगभग न के बराबर हो गई थी । लेकिन हाल के दसकों में स्थित में काफी बदलाव आया है ।
अब सासाराम अर्थात जिला रोहतास के कैमूर पहाड़ी से नक्सलियों के कमजोर होने के कारण अब हर वर्ष मांझर कुंड जलप्रपात पर्यटकों और पिकनिक मनाने वालों से गुलजार हो उठता है ।
युवाओं का सबसे पसंदीदा पिकनिक स्पॉट
मांझर कुंड जलप्रपात की प्राकृतिक छटा के पास युवाओं में पिकनिक को ले भी खासा उत्साह रहता है। रोहतास जिले के अलावा अन्य जगहों से लोग हाथ में बर्तन, गैस चूल्हा व अन्य सामान के साथ बाइक व चारपहिया वाहन से मांझर कुंड जलप्रपात के पास पिकनिक मनाने पहुंचते है ।
हर साल सावन पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले पहले रविवार को 50 हजार से ज्यादा संख्या में सैलानी यहां पहुंचते है। जहां पिकनिक के रूप में मुर्गा, भात और पकवान का मजा लेते है।
मांझर कुंड का पानी पाचक है
मांझर कुंड के पानी की खासियत है कि ओवर डोज खाना खाने के बावजूद इस झरने का पानी पी लेने पर घंटे भर में ही पुनः भूख महसूस होने लगती है ।
ऐसे पहुंचे मांझर कुंड
बिहार के राजधानी पटना से करीब 158 किलोमीटर और जिला मुख्यालय सासाराम से सिर्फ 7 से 8 किलोमीटर दूर मांझर कुंड तक जाने के लिए ताराचंडी मंदिर के पास से दाई दिशा की ओर से सड़क बनी हुई हैं ।
पूर्व काल में पहाड़ी पर कुछ दूरी जाने के बाद सड़क दयनीय स्थिति में हुआ करती थी, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी दसा ठीक हो चुकी है । दो पहिया और चारपहिया वाहन यहां सुबह जाकर शाम तक लौट सकते हैं । इन रास्तों में लाईट की व्यवस्था , पंचर इत्यादि की व्यस्था नहीं है , क्यूंकि बीच में कोई मानव बस्ती नहीं है ।
“सासाराम कि गलियां” का अनुरोध
“सासाराम कि गालियां” संगठन आपसे अनुरोध करती है कि किसी भी जलप्रपातों पर भ्रमण करने से पहले इन बातों का जरुर ध्यान रखें :- सेल्फी लेने के लिए जलप्रपात के खतरनाक जगहों पर बिल्कुल नहीं जाइए , बारिश के कारण फिसलन का डर है ।
चट्टानों पर काई होने के कारण फ्रिक्शन फोर्स नहीं लग पाता है इसलिए इन जगहों पर खाली पैर ही ट्रेकिंग करने का कोशिश करें । तेज उफान वाले जगहों के अत्यधिक करीब जाने का प्रयास बिल्कुल नहीं करें, इन जगहों पर खतरों की अंदेशा हमेशा बनी रहती है ।