Wednesday, November 20, 2024
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नदी का किनारा, ताजी हवाएं और मन को सुकून चाहिए तो चले आईए इंद्रपुरी डैम | Indrapuri Dam

इंद्रपुरी बांध रोहतास जिले के तिलौथू ब्लॉक के इंद्रपुरी में सोन नदी के ऊपर निर्मित है ।  जैसा कि आपको मालूम होगा , हिंदुस्तान में हजारों छोटे बड़े नदियों के बीच सिर्फ 2 ही नद हैं ( पुलिंग) । ब्रम्हपुत्र नद और सोन नद दोनों मर्द /पुलिंग हैं ।

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Indrapuri Dam

मध्य प्रदेश के अमरकंटक के पास नर्मदा नदी के पूर्व से सोन नद बहता है । अपने जन्मस्थली मध्यप्रदेश से निकल कर उत्तरप्रदेश, झारखण्ड और बिहार के कुछ जिलों से होते हुए पटना के पास जाकर गंगा नदी में मिल जाती है ।

सोन नाम के पीछे रोचक तथ्य

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Golden Sand Of River Son

पीले ,चमकदार और सुनहरे रंग के बालू अर्थात रेत होने के कारण इस नद का नाम सोन पड़ गया । सोन नद के बालू ,सोने की तरह ही चमकदार होते हैं ।

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Indrapuri Dam

 

गृह निर्माण में सोन का बालू उपयोग होता है । बिहार , झारखंड के अलावे उत्तरप्रदेश में भी सोन के बालू का भारी डिमांड रहता है ।

मछलियों के लिए मशहूर

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Fish Nets at Indrapuri Dam

सोन नद पर बना इंद्रपुरी डैम मछलियों के लिए मशहूर रहा है , इसमें कई तरह की स्वादिष्ट मछलियां पाई जाति है ।

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Indrapuri Dam

अब मछलियों कि संख्या कम हो गई है ,लेकिन अभी भी खाली समय में लोग यहां खाना बनाने और पिकनिक मनाने के लिए आते हैं ।

इंद्रपुरी डैम का आर्किटेक्चर

Indrapuri Dam
Indrapuri Dam

इंद्रपुरी बांध 1,407 मीटर लंबा है, यह लंबाई इस बांध को दुनिया का चौथा सबसे लंबा बांध होने का गौरव प्रदान करता है ।

एचसीसी कम्पनी द्वारा इस बांध के उपर सड़क भी बनाया गया है , यह वही एचसीसी कम्पनी है जिसने दुनिया के सबसे लंबे फरक्का बराज का निर्माण किया था । फरक्का बराज की लम्बाई लगभग 2,263 मीटर है ।

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Indrapuri Dam

इतिहास

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Indrapuri Dam

इंद्रपुरी बांध का निर्माण 1960 के दशक में शुरू किया गया था । 1968 में यह बांध चालू हुआ था । मुख्य नहरें 209 मिल हैं । छोटी नहरें 150 मिल हैं । 1478 मिल तक की दूसरी छोटी नहरें भी हैं ।

कभी व्यापार के साधन थें सोन के नहर

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Nahar | Cannel From River Son

4543 माल-वाहक और 537 यात्री-वाहक छोटे जलपोत रजिस्टर्ड थे ।

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Indrapuri Dam

20 वीं सदी में ये स्टीमर रोहतास के डेहरी और औरंगाबाद के बारूण से सोन नद में चलकर गंगा नदी में पहुंचते थे, जहां से यात्री वाहक और माल वाहक बड़े स्टीमरों के जरिये पूरब दिशा में कोलकाता शहर तक और पश्चिम दिशा में बनारस होते हुए इलाहाबाद अर्थात प्रयागराज तक पहुंचते थे ।

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