भोजपुर के जिला मुख्यालय का नामकरण जिस देवी के नाम पर हुआ है वो मां आरण्य देवी ही हैं । मां आरण्य देवी प्राचीन काल से इलाके के लोगों की आराध्य हैं । मां आरण्य देवी मंदिर में विराजमान मां आरण्य , नगर की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है।
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प्राचीन काल से पूजा ,लेकिन मन्दिर बाद में बना
मां आरण्य देवी मंदिर तो बहुत पुराना नहीं है लेकिन सनातन धर्मग्रंथों में यहां प्राचीन काल से मां आरण्य देवी पूजा का वर्णन मिलता है । संवत् 2005 में स्थापित हुआ था मंदिर ।
मां आरण्य देवी प्राचीन काल से पुजी जाति हैं
कई किदवंतीयां मशहूर हैं, इनका जुड़ाव महाभारत काल से है । कई जगहों पर भगवान राम के जनकपुर गमन के प्रसंग से भी जोड़ा जाता है ।
इतिहास के अनुसार इस मंदिर के चारो ओर पहले जंगल था। पांडव वनवास के क्रम में आरा में भी ठहरे थे। पांडवों ने यहां आदिशक्ति की पूजा-अर्चना की।
मां ने युधिष्ठिर को आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित करने का स्वप्न में संकेत दिया था । जिसके बाद धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां मां आरण्य देवी की प्रतिमा स्थापित किया था ।
वास्तुकला
संवत् 2005 में स्थापित यह मंदिर संगमरमर टाइल्स द्वारा निर्मित है । मंदिर का मुख्य द्वार पूरब दिशा की ओर है । मुख्य द्वार के ठीक सामने मां की भव्य प्रतिमाएं हैं।
द्वापर युग से संबंध
द्वापर युग में इस स्थान पर राजा म्यूरध्वज राज किया करते थें । इन्हीं के शासन काल में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ यहां पहुंचे थे। उन्होंने राजा के दान की परीक्षा भी लिया ।
इस मंदिर में छोटी प्रतिमा को महालक्ष्मी और बड़ी प्रतिमा को सरस्वती का रूप माना जाता है।
नवरात्र में उमड़ता है श्रद्धालुओं का हुजूम
शारदीय व चैती नवरात्र पर विशेष पूजा अर्चना को भक्तगण पहुंचते हैं । अन्य प्रदेशों से भी काफी संख्या में भक्त लोग पूजा अर्चना को यहां आते हैं। उत्तर प्रदेश के श्रद्धालुओं कि संख्या अच्छी खासी रहती है ।
शारदीय नवरात्र की सप्तमी की अहले सुबह यहां विशेष आरती की जाती है और विशेष प्रसाद की व्यवस्था रहती है । मंदिर की सजावट और मां के भव्य शृंगार के लिए कोलकाता से विशेष माली बुलाए आते हैं। विशेष फूलों से पूरे मंदिर की सजावट की जाती है।
मंदिर कैसे पहुंचे ?
आरण्य देवी का मंदिर स्थानीय रेलवे स्टेशन से उत्तर तथा शीश महल चौक से लगभग 2 सौ मीटर उत्तर-पूर्व छोर पर स्थित है । यहां आवागमन के साधन/ट्रांसपोर्ट सुलभ उपलब्ध रहते हैं । आपको बताते चलें कि मंदिर के आस-पास पूजा सामग्रियों की दुकानें सजी रहती है ।